बलो के साम्यावस्था के मूल सिद्धान्त ( Fundamental Principles of Equilibrium )
बलो के साम्यावस्था के मूल सिद्धान्त ( Fundamental Principles of Equilibrium )
इस सिद्धान्त से यह तात्पर्य यह है की बल कब सौर किस दशा में साम्यावस्था रहेगी , वह किस स्थिति में साम्यावस्था के नियम को संतुस्ट करेगी।
बलो की साम्यवस्था मूल सिद्धान्त निम्न है -
1 . एक बल कभी भी साम्यावस्था में नहीं रह सकता है।
क्योकि किसी भी body पर एक बल लगाने से उसकी स्थिति में परिवर्तन हो जायेगा और वह पिण्ड पर होने वाले वाले बल के प्रभाव को निष्क्रिय ( Neutralise ) नहीं कर पायेगा। इसलिए एक बल साम्यावस्था में नहीं हों सकता है।
2 - किसी बल - निकाय का परिणामी शून्य होने पर ही वह बल - निकाय साम्यावस्था में होता है।
बल - निकाय का अर्थ यह है की - जब किसी समतल ( Plane ) में एक से अधिक बल कार्य कर रहे हो और उन सब बलो के बराबर एक अकेला बल जो उनकी प्रभावों को शून्य बना देता हो ( तो व्ही परिणामी बल होता है ) और परिणामी ही शून्य होगा तो बल - निकाय भी साम्यावस्था में होगा।
3 -एक ही सरल - रेखा पर कार्य करने वाले दो बराबर व विपरीत बल साम्यावस्था में होते है।
मतलब - किसी सरल रेखा पर दो बल इस प्रकार हो की वे परिमाण में बराबर हो तथा एक दूसरे के
विपरीत कार्य कर रहे हो तो वे बल भी साम्यावस्था में होंगे।
4 - किसी बल - निकाय के अधीन कार्य करने वाले पिण्ड पर साम्यावस्था को बनाये रखने वाला अन्य बल - निकाय पिण्ड को बिना प्रभावित किये लगाया जा सकता है।
इसका तात्पर्य यह है की जब कोई भी पिण्ड सन्तुलन या साम्यावस्था में होती है तो बलो के अधीन ही कार्य करती है तो अगर इस दौरान कोई दूसरा बल - निकाय लगाए और उस पिण्ड की साम्यावस्था को प्रभावित न करे तो लगाया जा सकता है
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